- भूपेंद्र कुमार अस्थाना
Gulabo Sitabo movie poster & Juhi Chaturvedi |
फिल्म की कहानी उत्तर प्रदेश के लखनऊ में रहने वाले मकान मालिक और किराएदार के रिश्ते के बीच होने वाले झगड़ों पर आधारित है। जिसे अमूमन हम लोग ( जो भी किराएदार के रूप में रहता है ) अक्सर झेलते रहते हैं। कहानी के साथ साथ सभी कलाकारों के अभिनय भी शानदार हैं।
बहरहाल, चूंकि लखनऊ अपने आप मे एक अलग पहचान रखता है और कला के तमाम विधाओं का यहाँ संगम भी है। यहाँ का रहन-सहन, खान- पान पहरावा, इमारत, बोली और राजनीति आदि इन सबका अपना एक रुतबा है। जो लोगों को अपनी तरफ हमेशा से आकर्षित किया है। जिसके कारण तमाम फिल्मों में लखनऊ को अलग अलग ढंग से परोसा गया है।
लखनऊ कला महाविद्यालय |
यह बातें आज लखनऊ कला महाविद्यालय की पूर्व छात्र रही जूही चतुर्वेदी द्वारा लिखित और डायरेक्टर सुजीत सरकार की फ़िल्म गुलाबो सिताबो को देखने पर फिर पता लगा।
इस फ़िल्म में लखनऊ खूब दिखाया गया है। रूमी गेट, इमामबाड़ा, हनुमान मंदिर, कला महाविद्यालय, कैसरबाग बस अड्डे से लेकर छतर मंजिल के बरगद तक। या यूं कहें कि लखनऊ के चरित्र को बड़े ही बारीकी से प्रस्तुत किया गया है। मुशायरे का भी दृश्य है। लखनऊ की कुछ कहावतें भी हैं, लखनऊ के नवाब भी दिखे। और लखनऊ रंगमंच के तमाम चेहरे (परिचित चेहरे त्रिलोचन कालरा,संदीप यादव भी) अपनी अभिनय की शानदार प्रस्तुति दी है।
लखनऊ कला महाविद्यालय |
गुलाबो सिताबो में लखनऊ कला महाविद्यालय को कई बार देखा बहुत अच्छा लगा। चूंकि मैं लखनऊ कला एवं शिल्प महाविद्यालय का छात्र 2006 से 2012 तक रहा हूँ और पूरी जिंदगी मैं इस महाविद्यालय से जुड़ा रहूंगा। यह मेरा सौभाग्य ही है कि 109 वर्ष पुराने इस महाविद्यालय की एक अलग पहचान रही है और आज भी है यह इस महाविद्यालय से जुड़े उन तमाम कलाकारों की बदौलत है जिन्होने अपने कला से पहचान देश विदेश में बनाई है। यह गर्व की बात है।
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लखनऊ की पहचान सिर्फ नवाबों से ही नहीं बल्कि उन तमाम कला के विधाओं से जुड़े कलाकारों, साहित्यकारों से रही है जिन्होंने अपनी फ़न से लोगों के दिलों में जगह बनाई और आज भी जिंदा है और सदा रहेंगे।
जूही चतुर्वेदी ख़ुद लखनऊ से ताल्लुक रखतीं हैं ये कला महाविद्यालय लखनऊ की पूर्व छात्र भी रहीं हैं। फिल्म की कहानी जूही चतुर्वेदी ने लिखी है। बिग बी पहले भी उनके साथ 'पीकू' कर चुके हैं। इस फ़िल्म का पूरा बैकड्रॉप लखनऊ है। लखनऊ के मिजाज को बख़ूबी पेश किया है। इस फ़िल्म में लखनऊ से जुड़े जूही की अनुभव देख सकते हैं। शहर के कला,संस्कृति, मिजाज से लेकर पुराने ऐतिहासिक इमारतों की भी झलक मिलती है। दरअसल यही इस शहर का पोर्ट्रेट है। कहानी को शानदार तरीक़े से कहने का श्रेय सुजीत सरकार को जाता है।
जूही चतुर्वेदी ने इससे पहले भी शूजित सरकार के फ़िल्म विक्की डोनर, मद्रास कैफे, पीकू और अक्टूबर में साथ काम किया है।
Bhupendra Kumar Asthana
Artist & Curator
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