-ऋत्विका कश्यप
कुछ पल का जो साथ था वो छूटा
तेरे हाँथों से मेरा हाँथ छूटा
कुछ पल की वो मस्तियाँ
वो हंसी वो ख़ुशी वो सुकून छूटा
तू रूठा जग छूटा
हर एक मंजर लगे झूठा
तुम बिन खुश हूँ
तन्हा खुश हूँ
हर रोज छुपाऊं दुनिया को
पर खुद से कैसे पीर छुपाऊं
जो नैन बसी बरसात छुपाऊं
आ भी जाओ
एक बार सही
इक़रार नहीं
इंकार सही
बस एक आखिरी
भेट मांगती
ये तेरी पगली झल्ली
वो एक लड़की।
ऋत्विका कश्यप