-भूपेंद्र कुमार अस्थाना
सृजन - 2018 मूर्तशिल्प कार्यशाला के दौरान रचना सामग्री में स्क्रैप मेटल का उच्च स्तर पर हुआ अदभुत प्रयोग।
कला के दर्शन (देखने) और संवाद के दौरान पता चलता है कि कला एक सृजन प्रक्रिया है। और सृजन और शोध की कोई सीमाएं नही होती है किंतु सृजन सिर्फ निर्माण नहीं है जो नए नए संसाधनों के रूप में दिखाई दे। सृजन किसी भी रूप में हो चाहे शिल्प हो या चित्र कोई भी रूप हो हृदय में अनुभव की जाने वाली अद्भूतताओ का प्रगट रूप है जिसे कलाकार विभिन्न माध्यमो की सहायता से प्रकट करता है।
विभिन्न साधनों के उपयोग से प्राचीन और आज कलाकृतियां बनती हैं। आज भी कलाकारों के पास माध्यमों की कोई कमी नहीं है। विविध प्रकार के नए नए माध्यमों में कला रूपों का विकास किया जा रहा है। कलाकार उन्ही माध्यमों का उपयोग अपनी अभिव्यक्ति में कर रहा है जो उसे उसके अभिव्यक्ति के माध्यम के लिए सहज और सुलभ है। आवश्यकता अनुसार उसे अपने काम मे ले रहा है। कलाकार को अनेक साधनों की जानकारियां है और उसके सामने अनेक साधन है जिनसे नवीन माध्यमों और साधनों के साथ नए नए कला रूपों में अपनी कलाकृतियों का निर्माण कर रहा है। आज शिल्प में स्क्रैप मेटल माध्यम बहुत ही चर्चित माध्यम बन गया है। इस माध्यम में कुछ कलाकारों ने कला जगत में अपनी विशिष्ट पहचान बनाई और कुछ बना भी रहे हैं। कलाकार का आशय बस अपने को व्यक्त करना होता है, माध्यम कोई भी हो। माध्यम कलाकार के लिए बाधा नही बनता है।
इसी उदाहरण को चरितार्थ होते हुए पिछले दिनों ललित कला अकादेमी, नई दिल्ली और ललित कला संसथान, डॉ भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय, आगरा के संयुक्त तत्वावधान में दिनांक 25 सितंबर से 1 अक्टूबर 2018 तक आयोजित सात दिवसीय राष्ट्रीय मूर्तिकार कार्यशाला में देखने को मिला। जिसका उद्घाटन,उत्तर प्रदेश के वर्तमान मुख्यमंत्री श्री योगी आदित्यनाथ , राज्यपाल श्री राम नाईक ने किया। इस मौके पर वहाँ के कुलपति डॉ अरविंद दीक्षित, ललित कला अकादेमी अध्यक्ष श्री उत्तम पचारणे, ललित कला संस्थान के निदेशक प्रो विनीता सिंह, कार्यशाला संयोजक सचिन चौधरी, ललित कला की तरफ से कार्यक्रम अधिकारी हरीश जोशी , इंचार्ज वेणु गोपाल सहित मूर्तिकला कार्यशाला में 16 मूर्तिकार उपस्थित रहे।
आज के कलाकार देखने के नए तरीकों और साधनों और कला के कार्यों की प्रवृत्ति पर नए विचारों के साथ प्रयोग कर रहे हैं। कल्पनात्मकता की ओर झुकाव आधुनिक कला की विशेषता है। यही नए कलात्मक नए प्रयोग अक्सर समकालीन कला कहा जाता है। आज दुनिया भर में नए प्रयोग के माध्यम से संस्थापन कला की शुरुआत हुई जो एक नया मुहावरा गढ़ने की दृष्टि से की गई है।
कलाएं बेजुबान होते हुए भी बिना बोले अपना गहन प्रभाव डालती हैं। आगरा में हुए मूर्तिकला कार्यशाला में बने स्क्रैप मेटल की कृतियों ने कुछ ऐसे ही प्रभाव वहाँ के कलाप्रेमियों पर डाले। जो बेजुबान होते हुए भी गहन चिंतन मनन करने को मजबूर कर दिया। एक संदेशात्मक भाव प्रस्तुत किया। यह भाव कृतियों में कलाकार की लगन , तकनीकी दक्षता, और मानसिक दृढ़ता की बदौलत ही आती हैं। जिसका जीवंत उदाहरण यहाँ देखने को मिला। कलाकार दो तरीकों से काम करता है एक माध्यम के अनुसार या अपने अनुसार माध्यम को ढालता है। दोनों ही तरीको से अपनी अभिव्यक्ति को प्रस्तुत करने का प्रयास करता है। मूर्तिशिल्प में मेटल कास्टिंग की प्रचलित खर्चीली विधा के बजाय बेकार या कबाड़ की सामग्रियों के इस्तेमाल से कृति का निर्माण की कलाकरों ने बहुत ही सुलभ तकनीकी विकसित की है। इस माध्यम में भी आकर्षित और प्रभावित करने की अदभुत क्षमता विद्दमान है।
अध्यक्ष, ललित कला अकादमी श्री उत्तम पचारणे- (नंदी 1,2) |
इस कार्यशाला में उत्तर प्रदेश , महाराष्ट्र के कलाकारों ने भाग लिया। जिसमे कलाकार और उनकी कृति इस प्रकार हैं - अध्यक्ष, ललित कला अकादमी श्री उत्तम पचारणे- (नंदी), रविन्द्र साल्वे-(फ्रीडम),किशोर ठाकुर-(अनहद),दीपक पणिकर-(स्कल्प्चर),सचिन चौधरी-(लवनेचर), देवानंद पाटिल-(विक्ट्री),विक्रांत मांजरेकर-(पीकॉक), प्रदीप काम्बले-(नेपथ्य),स्वप्निल कदम-(सर्कस),नितिन मिस्त्री-(कॉक), प्रभाकर सिंह-(एप्पल),गौरी गंगन -(रिदम), माधवी शर्मा -(बाज),दिनेश पाटिल -(होली मास्क),गणेश कुशवाहा -(सेल्फ पोर्ट्रेट),वंदना कोरी -(रेस्टिंग चेयर) जिन्होंने तमाम (स्क्रैप मेटल ) मोटर स्पेयर्स पार्ट्स और विश्वविद्यालय में पड़े पुराने लोहे के कबाड़ के कण कण को वेल्ड करके समाज को संदेश देने वाली कृतियों को मूर्त रूप प्रदान किया। साथ ही विश्वविद्यालय के ललित कला संस्थान के मूर्तिकला विभाग के छात्र रोहिना सेंगर ( चतुर्थ वर्ष ) और लवी गुप्ता ( तृतीय वर्ष) दोनों ने इस माध्यम का प्रयोग करते हुए उल्लू और साइकिल जैसी कृति का निर्माण किया। इस कार्यशाला में कुल 17 मूर्तिशिल्प का निर्माण हुआ जिसमें से 2 कृति ( नंदी ) ललित कला अकादमी के अध्यक्ष श्री उत्तम पचारणे ने बनाया। और बाकी कलाकारों ने एक एक बनाया। यह कार्यशाला इसलिए भी और महत्वपूर्ण हो जाता है कि स्वंय ललित कला अकादमी नई दिल्ली के अध्यक्ष श्री उत्तम पचारणे ने अपने अकादमी के व्यस्ततम समय में भी कलाकारों, छात्रों , शिक्षकों के साथ दिन रात कलाकृति निर्माण कार्य में लगे रहे। और एक सकारात्मक ऊर्जा के साथ प्रोत्साहित करते रहे।
इस कार्यशाला को सफल करने में डॉ भीम राव अंबेडकर विश्वविद्यालय का भरपूर सहयोग मिला। कलाकारो को समुचित व्यवस्था प्रदान किया जो किसी भव्य व्यवस्था से कम नही थी। विश्वविद्यालय के सदस्य (स्टाफ) डॉ शार्दूल मिश्रा ,देवेंद्र कुमार सिंह ,डॉ अरविन्द राजपूत ,डॉ मनोज कुमार ,डॉ ममता बंसल ,डॉ मृदुला जुनेजा ,दीपक कुलश्रेष्ठ ,डॉ देवश्री शर्मा और छात्र-छात्राओं ने कलाकारों का भरपूर सहयोग किया। अन्य संस्थानों के छात्र छात्राओं और कला प्रेमियों ने काफी संख्या में इस कार्यशाला का अवलोकन और कलाकारों से संवाद किया। कलाकृतियों के निर्माण में कलाकारों के सहयोग में एक कलाकार के साथ एक वेल्डर, हेल्पर और पांच छात्र लगे रहे। समस्त कलाकृतियों को विश्वविद्यालय परिसर में लगाया जाएगा जो इस कला के महा आयोजन की याद हमेशा दिलाता रहेगा।
यह आयोजन कुलपति डॉ अरविंद दीक्षित डॉ भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय, ललित कला संस्थान के निदेशक प्रो विनीता सिंह और अध्यक्ष श्री उत्तम पचारणे ललित कला अकादमी नई दिल्ली के विशेष प्रयासों से सफल हुआ।
इस कार्यशाला का आयोजन छात्र छात्राओं, शिक्षकों और समाज के विभिन्न वर्ग के लोगों को कला के प्रति जागरूक करने के उद्देश्य से इन संस्थानों ने किया।
इस कार्यशाला में बड़ी संख्या में छात्रों ने भाग लिया । कबाड़ के लोहे से बने कलाकृतियों का प्रशिक्षण भी छात्रों के दिया गया और छात्रों ने इस हुनर को सीखा। जिससे छात्रों के लिए इस हुनर से रोजगार की बड़ी संभावना है।
कला में धैर्य का होना बहुत जरूरी है जिसके होने से ही कलाकार के मस्तिष्क में जन्म लेते कल्पनात्मक विचार विभिन्न माध्यमो के जरिये आकार लेती हैं। कोई सोच भी नहीं सकता था कि काफी समय से बेकार पड़ी लोहे की वस्तुए भी सुंदर कलात्मक रूप, सजावट का जरिया बन सकती हैं। जिन्हें इस आठ दिवसीय कार्यशाला में कलाकारों और छात्रों ने रात दिन लगन और कठिन परिश्रम से कर दिखाया। यह सिलसिला निरंतर चलता रहेगा इसी विचार और संकल्प के साथ कलाकारों को सम्मानित करते हुए इस सात दिवसीय कार्यशाला का समापन हुआ।
Bhupendra Kumar Asthana
Artist & Curator
Tags:
कला एवं संस्कृति