Roti ka itihas - रोटी के बारे में संपूर्ण ऐतिहासिक जानकारी
Roti ka itihas - आज रोटी Roti हमारे खाने का एक महत्व पूर्ण हिस्सा है। जिसे प्रतिदिन खाया जाता है। पर क्या आपको पता है ? आज से सैकड़ों साल पहले आदिमानव रोटी Roti के बारे में जानते ही नहीं थे।
क्योंकि तब मनुष्य आखेट पर ही निर्भर करता था। और खेती का आविष्कार नहीं हुआ था। तो रोटी कब जन्मी और कौन से देश में रोटी के प्रमाण सबसे पहले पाए गए। oddstree रोटी Roti की पूरी कहानी इस आर्टिकल में बताने वाली है।
रोटी सर्वप्रथम कहाँ बनी Roti ka itihas
Roti रोटी Bread का सबसे प्राचीन प्रमाण मिस्र में प्राप्त होता है। मिस्र में एक महिला को 3500 वर्ष पुरानी एक टोकरी मिली। जिसमे रोटी Bread के प्रमाण मिले।
सर्वप्रथम रोटी के प्रकार क्या थे
अब जब इतनी पुराणी रोटी Bread की बात चली है तो ये भी कौतुहल का विषय है की उस समाये में रोटी कैसी दिखती होगी। तो उस टोकरी में रक्खी हुई रोटियां गेहूं के आंटे की थी। जो गोल रोटी, चौकोर रोटी, गेंद जैसी रोटी, शायद इन्हे बाटी या लिट्टी कहा जा सकता है। तथा पशु पक्षियों के आकार की रोटी भी पायी गयी।
मिस्र में मिली रोटी की टोकरी कहाँ है ?
यदि आप मिस्र में प्राप्त हुई रोटी की टोकरी को देखना चाहते है तो ये रोटी की टोकरी नूयार्क के एक अजायबघर Museum में ज्यों की त्यों रक्खी हुई है। मिस्र की कई समाधियों से रोटी की पुरानी टोकरियां प्राप्त हुई हैं।
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रोटी की कहानी (Roti ki kahani)
यदि मिस्र के प्राचीन इतिहास की माने तो पता चलता ही की उस समय रोटी को मुद्रा के स्थान पर उपयोग किया जाता था। जिसे रोटी कह सकते हैं। हमारे यहाँ रोजी रोटी कहावत का प्रयोग श्रम के लिए भी किया जाता है।
उस दौर में राज्य के सभी अधिकारी, सैनिक, नौकर चाकर वेतन के रूप में रोटियां पाया करते थे। उस समय आज कल की भांति रोटी की रेसिपी नहीं होती थी। उस वक्त रोटी बनाने के लिए गेंहू को भिगो कर सील पर पीसते थे फिर उस गेंहू की अलग -अलग आकार में रोटियां बना ली जाती थी।
आपको ये जानकार हैरानी होगी परन्तु एक सुप्रसिद्ध इतिहासकार हैरोडोटस का कहना है की मिस्र वासी रोटी बनाने के लिए आंटे को हाथों से नहीं बल्कि पैरों से गूंथते थे।
भारत में गेहूं कब आया (bharat me gehu utpadan)
विद्वानों का ऐसा मानना है की भारत में गेंहू इसा से 9000 वर्ष पूर्व मेसोपोटामिया से आया था। जिसका उल्लेख यजुर्वेद में गोधूम मानस में है। मोहनजोदड़ो की खुदाई में मिले 500 वर्ष पूर्व गेंहू के देन भी इस बात का प्रमाण है की इस समय गेंहू का उपयोग तो होता था।
अकबर के समय रचे हुए ग्रंथ "भाव प्रकाश" में 'रोटीका' के गुण दोषों की चर्चा हुई है।
रोटी के गुण दोष
"भाव प्रकाश" ग्रन्थ में सिर्फ गेंहू की ही नहीं वरन विभिन्न अनाजों से बानी रोटी के गुण दोष का विस्तार पूर्वक वर्णन मिलता है।
गेंहू की रोटी- गुण पौस्टिक एवं वातनाशक होती है।
जौ की रोटी - जौ की रोटी कफ स्वास तथा पाचन में हलकी और वातनाशक है।
उरद की रोटी - उरद के चूरे से बानी रोटी जिसे 'बल्भद्रिका' कहते हैं यह बलवर्धक होती है। परन्तु वायुकारक भी है। धुले उरद की रोटी जिसे 'झजरिका' कहा जाता है यह कफ पित्त का नाश करने वाली होती है।
बेसन की रोटी - बेसन की रोटी रूखी और भारी होती है। कफ पित्त नाशक और नेत्रों के लिए अहितकारी मानी गयी है।
इसके आलावा पावरोटी, नान या तंदूरी रोटी, खमीरी रोटी आजकल प्रचलन है।
तंदूरी रोटी का इतिहास (tandoori roti)
bread
इस रोटी का रिवाज पंजाब में है। यह खमीर मिला कर बनती है। तथा खमीरी रोटी जैसी ही होती है। ये तंदूर में पकाई जाती है। यह काफी फूल जाती है। पान फ़ारसी भाषा का शब्द है। अतः ये मुगलों की देन है। रोटी बनाने वाले को नानबाई कहा जाता था।
यदि भारतीय रोटी Indian Bread की बात करें तो ये कई प्रकार की होती है जिसमे फुल्का या चपाती ही सबसे ज्यादा बनती है। तथा बाटी/लिट्टी/भौरी मुकनी भी है। जिन्हे गरीबों की रोटी मन जाता था। ये गेंहू के अलावा भी विभिन्न अनाजों से बनती है।
जैसे बाजरे की रोटी
बेसन की रोटी
चने की रोटी
गेंहू की रोटी
मक्के की रोटी
जौ की रोटी
उरद की रोटी
सोया की रोटी
पर हमारे देश में यानि भारत में रोटी बनना कब शुरू हुई यह कहना बहुत कठिन है क्योंकि सबसे प्राचीन वेद ऋघुवेद में गेंहू का कहीं वर्णन नहीं मिलता है। जौ सत्तू, भाड़, भड़भूजे और चलनी की व्याख्या है।
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संसार की सबसे प्राचीन भाषा चित्रलिपि के उपरान्त संस्कृत ही है। जिसमे रोटी और तवे के लिए कोई शब्द ही नहीं है जिससे पता चलता है क शायद आर्य लोग रोटी या गेंहू के बारे में नहीं जानते थे वरन जौ के सत्तू का उपयोग होता था।
आज भी यज्ञ में जौ एवं चावल की प्रशस्त मने जाते है। तथा भोजन गृह को भक्तशाला कहा गया है क्योकि वह बैठकर भात खाया जाता था। परन्तु यूरोप में प्रारंभिक काल से ही रोटी को किसी न किसी रूप में उपयोग किया जाता था।
यूरोपीय रोटी (Bread in Europe)
यूरोप में बनने वाली रोटियां हमारी रोटियों की तरह नहीं होती थी। यह बाज़ारू रोटियों या पावरोटी Bread होती थी। इसे सभी बना भी नहीं सकते थे। राज्य द्वारा रोटियां बनाने का अधिकार कुछ ही व्यक्तियों को दिया जाता था। सभी को उन्ही से रोटियां खरीदनी पड़ती थी। ये रोटियां खमीरी रोटियां हुआ करती थी। जिनगी डबल रोटी के रूप में जाना जाता है।
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रोटी के प्रकार Types of Chapati
आज न जाने कितने तरीके की रोटी की रेसिपी आ चुकी है। जिनमे आप यदि तली भुनी रोटियों को भी शामिल करें तो यह पूरी, कचौड़ी भटूरा कुलचा पराठा आदि भी हो सकते है। परन्तु आज भी सबसे फेमस चपाती, फुल्का, के बाद रुमाली रोटी, खमीरी रोटी, तंदूरी रोटी विभिन्न प्रकार की मीठी रोटी आदि हैं। इटली की फेमस रोटी पिज़्ज़ा भी आज कल काफी पॉपुलर रोटी हो चुका है।
अगर आज रोटियों की बात करें तो यह इतने तरीके से बनायीं जाने लगी है की एक आर्टिकल में सबके बारे में बात करना ही मुश्किल है।
उम्मीद करती हूँ आप सभी को रोटी की यह कहानी Roti ka itihas पढ़कर मज़ा आया होगा। कृपया अपनी प्रतिक्रिया कमेंट बॉक्स में दें।
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